Tuesday, November 3, 2020

 ज़रूर पढ़े। यह ईश्वरीय संदेश है, एवं ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय पर पढ़ाई जानेवाली स्पिरिचुअल (आध्यात्मिक) पढ़ाई का सार है। सर्व आत्माओं के कल्याणार्थ लिखे गए इस संदेश को कृपया दूसरों के साथ भी शेयर करें। डाउनलोड या प्रिन्ट करने के लिए यह PDF version है।

 

शुरू करने से पहले, यदि आपके लिए BKWSU नया है, तो हमारा निवेदन है कि आप पहले हमारे 'About Us' पेज पर जाएं और फिर ईश्वरीय ज्ञान का सार समझने के लिए 'ऑनलाइन'  7 दिवसीय राजयोग कोर्स करें। यदि आप हमारे बारे में पहले से जानते हैं, तो कृपया नीचे पढ़ना शरू करे। 

में तुम्हारा रूहानी पिता

तुमने मुझे जनम जनम पुकारा, मेरे मंदिर, मस्ज़िद, चर्च, आदि बनाये और मुझे ढूंढ़ने की हर कोशिश की।  तुमने कितने जनम तपस्य की, दान पुण्य किये, ताकि तुम मुझे मिल सको।  मेरे मीठे बच्चे, में तो तुम्हारा रूहानी बाप हूँ।  में भी तुम्हारी जैसे एक आत्मा हु, लेकिन मुझे परम-आत्मा कहते है। में आता ही हु जब दुनिया में दुःख अशांति बढ़ जाती है, जब धर्म को भुला तुम आत्माए दुःख को पा लेती हो।  में परमपिता परमात्मा इसी समय आता हूँ, और पुनः स्वर्णिम सतयुगी सुख की दुनिया की स्थापना करता हूँ। तुम सभी आत्माओ का कल्याण करता, और तुम्हे दुःख से छुड़ाकर सुख में ले जाता हूँ।  इसीलिए जब भी तुम दुखी होते हो तो मुझे याद करते हो।

मेरे अतिप्रिय बच्चे, तुमने मेरे बारे में बहोत कुछ सुना होगा, मेरे बारे में पढ़ा होगा।  लेकिन अब समय आ गया है कि मैं तुमसे सीधे बात करूँ, तुम्हे वह सच्चाई बताऊं जिसकी तुम्हे तलाश थी।  इससे पहले कि मैं तुम्हे अपने बारे में बताऊं, मैं तुम्हे तुम्हारे अपने बारे में याद दिला दूं।  मीठे बच्चे, तुम वह नहीं हो जो तुम्हे लगता है कि तुम हो - नाम, धर्म, पेशा, संबंध... यहाँ तक कि तुम यह शरीर भी नहीं हो जिसे तुम अपनी भौतिक आँखों से देखते हो।  तुम एक दिव्य चेतना हो, ऊर्जा के अतिसूक्ष्म चमकते सितारे हो, जो इस शरीर का उपयोग कई भूमिकाएं निभाने के लिए करता है।  तुम एक पवित्र, शांतस्वरूप, प्रेमस्वरूप, शक्तिशाली आत्मा हो।

में और तुम मेरे 

इस दुनिया में आने से पहले, आप सभी अपने घर में रहते थे... आत्माओं की दुनिया... संपूर्ण शान्ति और पवित्रता की दुनिया में।  लेकिन आपको, मेरे प्यारे बच्चों को, इस धरती पर अपनी भूमिका निभानी थी, जिसके लिए आप अपना घर छोड़कर इस सृष्टि पर आए।  जब आप पहली बार इस सृष्टि पर आए तो आप सम्पूर्ण, सतोप्रधान और दिव्य थे।  आप में से हरेक के पास पहनने के लिए एक आदर्श शारीरिक पोशाक (शरीर) था और यह दुनिया एक आदर्श दुनिया थी... दिव्यता, प्रेम और समृद्धि की दुनिया, जिसे पेरेडाइज़, हेवन, स्वर्ग, जन्नत, बहिश्त और अल्लाह का बगीचा कहते है... जब आपका शरीर पुराना हो जाता, आप बस पुरानी ड्रेस (शरीर) बदल नई पहन लेते और अपना नया रोल (भूमिका) निभाते।  घर से और भी बच्चे इस सृष्टि रंगमंच पर आपके साथ शामिल होते गए। आप सभी बच्चे इस स्वर्णिम युग का आनंद ले रहे थे, जिसे सतयुग (गोल्डन ऐज) और त्रेतायुग (सिल्वर ऐज) कहा जाता है।

तुम्हारी कहानी

जब तुम बहुत लम्बे समय तक विश्व मंच पर अपनी भूमिका निभाते रहे, तो तुम्हारी पवित्रता और शक्तियाँ धीरे-धीरे कम होने लगी।  तुम अपनी असली पहचान भूल गए और सोचा कि जो शरीररूपी वस्त्र तुमने पहना था वह ही तुम हो, फलस्वरूप काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार तुम्हारे व्यव्हार में आने लगा।  आप सब के बीच जो प्रेम, मधुरता और सामंजस्य था वह खो गया, आप एक दूसरे के साथ लड़ने-झगड़ने लगे, धोख़ा देने लगे।  जब तुम्हे दुःख और दर्द का अनुभव हुआ, तब तुमने मुझे पुकारना शुरू किया।  तुम मुझे ढूंढ़ने लगे, तुम भूल गए थे कि मैं, तुम्हारा पिता, आत्माओं की दुनिया (सोल वर्ल्ड) में रहता हूँ।  तुम अपनी ही दुनिया में मूझे  ढूंढने लगे।  तुम्हे एक धुंधली सी याद थी कि मैं तुम्हे बहुत प्रेम करता हूँ, मैं प्रकाश (ज्योति) का पुंज हूँ, इसलिए तुमने मंदिरो का निर्माण करना शुरू किया, जहाँ तुमने मुझे याद करने के लिए मेरे स्वरुप का प्रतिक बनाया।

Tip: यह वीडियो देखे➙ हमारी कहानी (Lost & Found)

साथ ही, परमधाम (आत्माओं की दुनिया) से  इस सृष्टि पर कुछ पवित्र, दिव्य बच्चे आपका मार्गदर्शन करने के लिए आए, जैसे कि - मोहम्मद, ईसा मसीह (क्राईस्ट), गौतम बुद्ध, महावीर, गुरु नानक। वे आपको जीवन जीने का सही तरीक़ा सिखाने आए थे। उन्होंने आपको मेरी याद दिलाई और वे आपको मुझसे जोड़ने आए।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, आप धर्म, जाति, पंथ और राष्ट्र के नाम पर बँटते गए।  आप, मेरे प्यारे बच्चे, मेरे नाम पर युद्ध छेड़ने लगे।  आपने अपने पूर्वजों के मंदिरों का निर्माण करना शुरू किया, वह दिव्य, पवित्र आत्माएँ जो आपकी दुनिया में सतयुग और त्रेतायुग (स्वर्ग) में हो कर गए थे - श्री लक्ष्मी नारायण, श्री राम सीता... आपने उनकी महिमा के लिए मंदिर बनाए और आपने उनमें मुझे ढूँढना शुरू किया।  जैसे-जैसे आपका दुःख बढ़ा, मेरे लिए आपकी ख़ोज और तीव्र होती गई। फिर आपने मुझे प्रकृति में भी ढूँढना शुरू किया।  आप में से कुछ लोगों ने मुझे ख़ोजने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, लेकिन फिर भी मुझे ढूँढ नहीं पाए।  आप में से कुछ लोग अपने विज्ञान और तकनीक की दुनिया में इस कदर उलझ गए थे कि आप यह भी मानने लगे कि मेरा अस्तित्व ही नहीं है।  यह द्वापरयुग और कलियुग का समय था।

जब भी आपके सामने कोई समस्याएँ आई, आपने सोचा कि मैं आपका भाग्य लिखता हूँ, इसके लिए आपने मुझे दोषी ठहराया और मुझसे इसे ठीक करने की प्रार्थना की।  मीठे बच्चे, मैं तुम्हारा पिता हूँ, क्या मैं आपको कभी बीमारी, गरीबी, संघर्ष या प्राकृतिक आपदाएं दे सकता हूँ? आपकी दुनिया में सब कुछ कर्म के सिद्धांत के आधार पर काम करता है, जो कर्म आप करते हो उसीका रिटर्न (फल) आपको मिलता है।  आप ही अपने भाग्य के निर्माता हो।  मैं आपको वह ज्ञान और शक्तियाँ दे सकता हूँ कि जिससे आप एक अद्भुत भाग्य बना सकें।  लेकिन इसके लिए, आपको मुझसे जुड़ने और मेरे द्वारा दिए जा रहे इस ज्ञान का अध्ययन करने की आवश्यकता है।

प्यारे बच्चे, मेरे लिए तुम्हारी तलाश अब ख़त्म हुई।  मैं आपको याद दिलाने के लिए आया हूँ कि आप वास्तव में कौन है और मैं कौन हूँ - मेरा और तुम्हारा रिश्ता क्या है !

मेरे प्यारे बच्चों, तुम्हारी तरह, मैं भी केवल एक ज्योतिर्मय बिंदु (प्रकाश का पुंज) हूँ।  मैं पवित्रता का सागर, प्रेम का सागर और ज्ञान का सागर हूँ।  तुमने मुझे कई नामों से पुकारा है।  मैं तुम्हारा पिता हूँ, टीचर (शिक्षक) और गाईड (मार्गदर्शक) हूँ।  तुम बच्चे शरीर धारण करते हो और जन्म-मृत्यु के चक्र में आते हो, मैं कभी भी शरीर नहीं लेता।  मैं परमधाम निवासी हूँ, शान्ति और पवित्रता की दुनिया, जो वही घर है जहाँ से आप सभी इस सृष्टि पर आए।  तुम्हे फिरसे पावन बनाने के लिए, मैं तुम्हे ज्ञान, प्रेम और शक्ति देने आया हूँ।

 

मीठे बच्चे, अपने वास्तविक स्वरूप को जानो और मुझसे जुड़ो।  मुझे याद करो और अपने शान्ति, पवित्रता, आनंद, ख़ुशी, प्रेम और शक्तियों के वरसे को प्राप्त करो।  मैं तुम्हे गुणों और शक्तियों से भर दूँगा ताकि हम मिलकर नई दुनिया का निर्माण करें, एक ऐसी दुनिया जहाँ शान्ति ही धर्म है, प्रेम ही भाषा है, करुणा ही संबंध है, हर कर्म में सत्यता है और ख़ुशी ही जीवन जीने का तरीका है।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

परमात्मा पिता का हम बच्चों से यह वायदा है कि जब धर्म की अति ग्लानि होंगी, सृष्टि पर पाप व अन्याय बढ़ जायेगा... तब वे इस धरा पर अवतरित होंगे... अब हमने जाना है की वो एक साधारण मनुष्य तन का आधार लें, हमें सत्य ज्ञान सुनाकर, सद्गति का रास्ता दिखा, दुःखों से मुक्त कर रहे हैं।  यह गायन वर्तमान समय का ही है, जबकि कलियुग के अन्त और नई सृष्टि सतयुग के संगम पर, स्वयं परमात्मा अपने वायदे अनुसार इस धरा पर अवतरित हो चुके हैं , तथा इस दुःखमय संसार (नर्क) को सुखमय संसार (स्वर्ग) में परिवर्तन करने का महान कार्य गुप्त रूप में करा रहे हैं।

Saturday, May 2, 2020

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवान भाईंनी

सांगली, दि. 15 : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालयाचे मुख्यालय असलेल्या माऊंट अबू येथील ब्रह्माकुमार भगवानभाईंनी केलेल्या उल्लेखनीय कामगिरीची दखल घेवून त्यांच्या कार्याची “इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड’ मध्ये नुकतीच नोंद झाली असून दिल्ली येथे एका विशेष समारंभामध्ये इंडिया बुक ऑफ रेकार्डचे मुख्य संपादक विश्वरूपराय चौधरी यांच्या हस्ते त्यांना सन्मानित करण्यात आले.
भगवानभाईंनी आतापर्यंत भारतातील विविध प्रांतातील 5000 शाळा, महाविद्यालयांमध्ये जाऊन लाखो विद्यार्थ्यांना मूल्यनिष्ठ शिक्षणाद्वारे नैतिक व अध्यात्मिक विकासासाठी उद्‌बोधन केले आहे. 800 कारागृहांमध्ये जाऊन हजारो कैद्यांना गुन्हेगारी सोडून आपल्या जीवनामध्ये सद्‌भावना, मूल्य तसेच मानवतेला स्थापित करण्यासाठी प्रेरित केले आहे. या कार्याची नोंद घेवून त्यांची या पुरस्कारासाठी निवड करण्यात आली.
सत्कारानंतर प्रतिक्रिया व्यक्त करताना ब्र. कु.भगवानभाई म्हणाले,  समाजामधील भ्रष्टाचार, व्यसनाधिनता, गुन्हेगारी समाप्त करावयाची असेल तर त्यासाठी शिक्षणामध्ये परिवर्तनाची आवश्यकता आहे. शाळा/ महाविद्यालयांमधूनच समाजाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये व्यक्ती प्रवेश करते. आजचा विद्यार्थीच उद्याचा समाज आहे. म्हणूनच समाजाच्या विकासासाठी शिक्षणामध्ये मूल्य व अध्यात्मिकतेचा समावेश करण्याची आवश्यकता आहे.
सांगली जिल्ह्यात आटपाडी तालुक्यातील तळेवाडी या छोट्याशा खेड्यात एका निरक्षर व गरीब कुटुंबात जन्मलेल्या भगवानभाईंना लिहिण्या- वाचण्यासाठी वही, पुस्तकेसुध्दा  मिळत नव्हती. वयाच्या 11 वर्षी त्यांनी शाळेत जायला सुरूवात केली. ते जुन्या रद्दीमधील  वह्यांची कोरी पाने व शाईने लिहिलेली पाने पाण्याने धुवून, सुकवून त्या पानांचा उपयोग लिहिण्यासाठी करीत. अशाच रद्दीमध्ये त्यांना ब्रह्माकुमारी संस्थेच्या एका पुस्तकाची काही पाने मिळाली. या रद्दीतील पानानींच त्यांचे जीवन बदलून गेले. त्या पानावर असलेल्या पत्त्यावरून ते ब्रह्माकुमारीसंस्थेमध्ये पोहचले व तेथील ईश्वरीय ज्ञान व राजयोगाचा अभ्यास करून आपले मनोबल वाढविले व त्या फलस्वरूप माऊंट अबू येथील आपले सेवाकार्य सांभाळून आजपर्यंत त्यांनी 5000 शाळा, महाविद्यालये व 800 कारागृहात जाऊन या सेवेचे एक रेकॉर्ड प्रस्थापित केले.
वर्तमानसमयी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालयाच्या शांतीवन या मुख्यालयातील विशाल किचनमध्ये सेवारत असून अनेक मासिकातून तसेच वृत्तपत्रातून आतापर्यंत 2000 हून अधिक लेख लिहिले आहेत. त्यांना मिळालेल्या या सन्मानाबद्दल सातारा सेवाकेंद्राच्या संचालिका ब्रह्माकुमारी रूक्मिणी बहेनजी व शिक्षणाधिकारी (माध्य.) मकरंद गोंधळी यांनी त्यांचे अभिनंदन केले

Tuesday, March 3, 2020

BRAHMAKUMARIS PUNE ब्रह्माकुमारीज पुणे सोमवार पेठ आदर्श शिक्षक कार्यक्रम बी के भगवान भाई माउंट आबू









BRAHMAKUMARIS PUNE ब्रह्माकुमारीज पुणे सोमवार पेठ आदर्श शिक्षक कार्यक्रम बी के भगवान भाई माउंट आबू








BRAHMAKUMARIS PUNE ब्रह्माकुमारीज पुणे सोमवार पेठ आदर्श शिक्षक कार्यक्रम बी के भगवान भाई माउंट आबू









Thursday, February 20, 2020

समाजसेवी हैं शिक्षक :- भगवान भाई


समाजसेवी हैं शिक्षक :- भगवान भाई

सिरसा 14 फरवरी (सिटी मीडिया) समाज को सुधारने व सही दिशा दिखाने के लिए आदर्श शिक्षकों की आवश्यकता है क्योंकि शिक्षक समाज शिल्पी होते हैं। उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विद्यालय माऊंट आबू से पधारे ब्रह्माकुमार भगवा भाई ने स्थानीय सी-ब्लॉक स्थित सद्भावना भवन में ‘आदर्श शिक्षक’ पर शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि वर्तमान के शिक्षक भावी समाज हैं। अगर भावी समाज को आदर्श बनाना चाहते हो तो छात्र-छात्राओं को भौतिक शिक्षा के साथ-साथ उनके नैतिक आचरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। मौजूदा समय की बिगड़ती परिस्थितियों को देखते हुए समाज-सुधार की दिशा में यह बहुत आवश्यक है। शिक्षक वही है जो अपने जीवन की धारणाओं से दूसरों को शिक्षा देता है, इन्हीं धारणाओं से विद्यार्थियों को बल मिलता है, जीवन की इन धारणाओं से वाणी, कर्म, व्यवहार और व्यक्तित्व में निखार आता है। भगवान भाई ने कहा कि शिक्षा देने के बाद भी यदि बच्चे बिगड़ रहे हों तो इसका मतलब है कि मूर्तिकार में कुछ कमी है। शिक्षक के अन्दर के संस्कारों का ही विद्यार्थी अनुकरण करते हैं। विद्यार्थियों का केवल पाठ पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं होता बल्कि सारे समाज को मार्गदर्शन देने वाला शिक्षक होता है। शिक्षक होने के नाते हमारे अन्दर सद्गुणों का समावेश अत्यधिक आवश्यक है, आज के दौर में शिक्षा में भौतिक सुधार तो है लेकिन नैतिकता का ह्नास होता जा रहा है, इसलिए शिक्षक वर्ग अपने जीवन की धारणाओं के आधार से बच्चों को नैतिकता का पाठ भी अवश्य पढ़ाएं। भगवान भाई ने कहा कि शिक्षकों के हाव-भाव, उठने-बैठने, बोलने-चलने, व्यवहार आदि बातों का असर भी बच्चों के जीवन पर पड़ता है। इस प्रकार समाज को शिक्षित करने व उसका स्वरूप बदलने की दृष्टिकोण से स्वयं के आचरण के शिक्षा देने की परम आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि समाज को सुधारने की दिशा में शिक्षकों की अहम भूमिका है। प्राचीन भारत में स्वामी विवेकानन्द व महात्मा गांधी जैसे महापुरूष शिक्षक के रूप में जाने जाते थे। इस प्रकार आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज का निर्माण कर सकता है। मूल्यहीन शिक्षा से सामाजिक, मानसिक, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय के साथ-साथ पारिवारिक समस्याएं पैदा होती हैं। इस अवसर पर स्थानीय ब्रह्माकुमारीज सेवाकेन्द्र की संचालिका ब्रह्माकुमारी प्रीति बहन ने कहा कि एक दीपक से पूरा कमरा प्रकाशमान होता है तो क्या हम पूरे जिले को मूल्यनिष्ठ शिक्षा से प्रकाशित नहीं कर सकते? अब आवश्यकता है सेवा भाव की। उन्होंने कहा कि आचरण की शिक्षा जुबान से भी तेज होती है। टी.सी. मेहता ने कहा कि परिवर्तन की जिम्मेवारी शिक्षकों की है। शिक्षकों को स्वयं के आचरण पर ध्यान देने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ तनावमुक्त रहने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्माकुमारीज द्वारा चलाए जा रहे इस अभियान की मुक्त कंठ से प्रंशसा की। इस अवसर पर बी.के. पालाराम, बी.के. रघु भाई, बी.के. शमां बहन ने भी अपने विचार प्रकट किए।

शिवरात्रि के आध्यात्मिक रहस्य को उजागर करते हुए कहा कि शिव त्रिकालदर्शी अखंड ज्योति स्वरुप है


शिवरात्रि कि मुबारक देते हुए ब्रह्माकुमार भगवान् भाई ने कहा कि शिवरात्रि का उत्सव स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद दिलाता है। शिवरात्रि पर सच्चा उपवास यही है कि हम परमात्मा शिव से बुद्धि योग लगाकर उनके समीप रहें। उपवास का अर्थ भी होता है समीप रहना। उन्होंने कहा कि शिवरात्रि के पर्व पर जागरण सच्चा अर्थ है कि विकारों से से स्वयं को बचाया जाए।
 ब्रह्माकुमार भगवान् भाई ने शिवरात्रि के आध्यात्मिक रहस्य को उजागर करते हुए कहा कि शिव त्रिकालदर्शी अखंड ज्योति स्वरुप है। सर्व आत्माओं के पिता शिव हैं। शिव का शाब्दिक अर्थ कल्याणकर्ता है। शिव भोलेनाथ भक्तों के ऊपर शीघ्र प्रसन्न हो जाने तथा उनका कल्याण करने वाले हैं। वे पतित पावन अर्थात् पतित हुई मनुष्यात्माओं को पावन बनाने वाले तथा सबके सद्गतिदाता है।
उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक अर्थ में रात्रि आत्माओं के अज्ञान-अंधकार, विकारों अथवा आसुरी लक्षणों का प्रतीक है। इसी समय परमात्मा प्रकट होकर ज्ञान का प्रकाश आत्माओं को देकर उन्हें विकारों से मुक्त करवाते हैं। सुखों के भंडारों से भरपूर करते हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा ही ज्ञान सागर है जो मानव मात्र को सत्य ज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं।
बी के शशि बहन जी ने कहा कि अब सभी को वापिस घर जाने कि याद दिलाती है शिवरात्रि

 ब्रह्माकुमार भगवान् भाई  ने कहा कि शिवरात्रि परमात्मा के अवतरण का पर्व है। शिवरात्रि पर ही परमात्मा इस धरा पर अवतरित हुए थे। इसी उपलक्ष्य में हम महाशिवरात्रि मनाते हैं। भगवान शिव अज्ञान एवं अंधकार मिटाने के लिए ही इस धरा पर अवतरित हुए थे। उन्होंने भगवान शिव की प्रतिमा पर बेल, धतूरा, बेल पत्र, गन्ना आदि चढ़ाए जाने का आध्यात्मिक रहस्य बताया।
बी के रजनी बहन ने  कहा कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय निकला हुआ विष स्वयं धारण किया था। यदि वह विष पृथ्वी पर डाल दिया जाता तो प्रलय हो सकती थी। भगवान शिव द्वारा विष कंठ में धारण कर लिया गय जिससे वह नीलकंठ कहलाए। बेल, धतूरा, बेलपत्र आदि विष को कम करते हैं। यही कारण है कि भगवान शिव को बेल पत्र, धतूरा आदि चढ़ाया जाता है।

सकारात्मक विचारों से आंतरिक मन में स्थिरता आती है

संसू, रामामंडी : ब्रह्मकुमारी आश्रम में अध्यात्मिक विषय पर एक सेमिनार करवाया गया। इस सेमिनार का उद्घाटन डॉ. केके गुप्ता तथा भूषण कुमार रामे वालों ने ज्योति प्रज्ज्वलित करके किया। सेमिनार में विशेष रूप से उपस्थित माउंट आबू से आए भगवान भाई ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि नकारात्मक सोच से ही अनेक समस्याएं पैदा होती है, जिससे जीवन में तनाव उत्पन्न होता है। इसलिए हर परिस्थिति में सकारात्मक नजरिया रखें जिससे तनाव से मुक्त हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि विचारों से स्मृति, दृष्टि, वृत्ति और दृष्टिकोण बनता है अगर विचार नकारात्मक है तो व्यवहार भी नकारात्मक होगा। उन्होंने विचारों को सकारात्मक बनाने पर जोर देते हुए कहा की सकारात्मक सोच से जीवन की सभी समस्या समाप्त हो जाएगी। सकारात्मक विचारों से व्यवहार भी सकारात्मक होगा। आत्म बल और मनोबल बढ़ेगा, जिससे व्यवहार में निखार आ जाएगा। उन्होंने मन को एकाग्र करने के लिए योग और ध्यान करने की सलाह दी। भगवान भाई ने कहा कि सकारात्मक विचारों से आंतरिक मन में स्थिरता आती है। मन एकाग्र हो जाता है, मन में सशक्तिकरण आ जाता है। एकाग्र मन शांति और सुख का आधार बन जाता है। उन्होंने कहा कि तनाव मुक्त होने के लिए जीवन के हर क्षण को सकारात्मक विचारों से सींचने का प्रयास करें। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्त्रोत बताते हुए कहाकि जब तक हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता को नहीं अपनाते तब तक अपने विचारों में बदलाव नहीं आएगा। उन्होंने आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए कहा कि स्वयं के बारे में जानना, कर्म गति को जानना, सृष्टि रचयिता को जानना ही वास्तविक आध्यात्मिकता है। इस मौके पर ब्रह्मकुमारी आश्रम की संचालिका बहन मधु दीदी बहन शीतल दीदी के अलावा बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे ।