Monday, January 16, 2012

खुद आदर्श बनें, तब बनेगा आदर्श समाज भास्कर न्यूज त्न बहादुरगढ़ प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के मुख्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने

खुद आदर्श बनें, तब बनेगा आदर्श समाज

भास्कर न्यूज त्न बहादुरगढ़

प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के मुख्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने कहा कि आज की बिगड़ती परिस्थिति को देखते हुए समाज को सुधारने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान के छात्र भावी समाज है। अगर भावी समाज को आदर्श बनाना हैं तो छात्राओं को भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक आचरण पर भी उनके ऊपर ध्यान देने की आवश्यकता है।

भगवान भाई ने पीडीएम पॉलीटेक्नीक कॉलेज में मंगलवार को टीचिंग स्टाफ और छात्र-छात्राओं के बीच विचार गोष्ठी में कही। उन्होंने कहा कि शिक्षक वही है, जो अपने जीवन की धारणाओं से दूसरों को शिक्षा देता है।

शिक्षकों को केवल पाठ पढ़ाने वाला नहीं बल्कि सारे समाज को श्रेष्ठ मार्ग दर्शन देने वाला होना चाहिए है। उन्होंने कहा कि शिक्षक होने के नाते हमारे अंदर सद्गुण होना आवश्यक है।

किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को अपने जीवन की धारणाओं के आधार पर नैतिक पाठ भी आवश्यक पढ़ाना चाहिए। शिक्षकों के हाव-भाव, उठना, बैठना, चलना व व्यवहार करना इन बातों का असर भी बच्चों के जीवन में पड़ता है। वहीं स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र के संदीप भाई ने कहा कि एक दीपक से पूरा कमरा प्रकाशित होता है।

इसी तरह एक शिक्षक से हजारों बच्चे शिक्षित होते हैं। कॉलेज के प्राचार्य एमएम शर्मा ने कहा कि वर्तमान की परिस्थितियों को परिवर्तन करने की जिम्मेवारी शिक्षकों की है। शिक्षकों को स्वयं के आचरण पर ध्यान देने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ तनाव मुक्त रहने की आवश्यकता है। इस मौके पर ओपी रुहिल व राजपाल मौजूद रहे।

भास्कर न्यूज त्न बहादुरगढ़ नाहरा-नाहरी रोड स्थित प्रजापिता ब्रह्मकुमारी सेंटर में माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई का उनकी विलक्षण प्रतिभा और कर्मठ स


भास्कर न्यूज त्न बहादुरगढ़
नाहरा-नाहरी रोड स्थित प्रजापिता ब्रह्मकुमारी सेंटर में माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई का उनकी विलक्षण प्रतिभा और कर्मठ समाजसेवा के चलते सम्मान किया गया।
सेंटर की संचालिका बीके अंजली बहन ने बताया कि भगवान भाई ने हरियाणा के विभिन्न शहरों में
नैतिक शिक्षा दी हैं।
उन्होंने बताया कि भगवन भाई को इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड के चीफ एडीटर विश्वरूप राय चौधरी द्वारा भी सम्मानित किया गया है। महाराष्ट्र के सांगसी जिले एक साधारण परिवार में जन्मे भगवान भाई को रद्दी की किताबों में ब्रह्मकुमारी सेवा केंद्र के किताबों के कुछ पन्ने मिले।
उन पन्नों ने उनका जीवन बदलकर रख दिया। इसके बाद तीस वर्षों के राजयोग के अभ्यास द्वारा उन्होंने अपना मनोबल व आत्मबल बढ़ाया। इसके फलस्वरूप आज भगवान भाई ने पांच हजार स्कूलों में तथा 800 जेलों में जाकर सेवा का नया रिकार्ड बनाया।
उनके प्रयास से हजारों कैदियों द्वारा अपराध को छोड़कर अपने जीवन में सद्भावना को अपनाया। सम्मान समारोह अवसर पर सेंटर की बीके विनीता, अमृता भी शामिल रहीं।

रेवाड़ी त्न जिला कारागार में प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर

रेवाड़ी त्न जिला कारागार में प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने वाले ब्रह्मकुमार भगवान ने विशेष रूप से संबोधित किया। उन्होंने विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से सफल जीवन के मंत्र बताए। उन्होंने कहा कि जब महर्षि वाल्मीकि ने अपने जीवन में किए हुए अपराधों को महसूस कर स्वयं के संस्कारों को परिवर्तन कर रामायण लिखने वाले वाल्मीकि बने तो क्या हम अपनी गलतियों को सुधार कर महान नहीं बन सकते। उन्होंने कहा कि यह कारागार नहीं बल्कि सुधारगृह है। इसमें व्यक्ति को अपनी बुराइयों का सुधार करने के लिए रखा गया है। बदला लेने से समस्या का समाधान होने के बजाय और बढ़ जाती हैं इसलिए स्वयं को बदलना चाहिए। कारागृह स्वयं में परिवर्तन लाने की तपोस्थली है। इस एकांत के तपोस्थली में बैठकर स्वयं को परिवर्तन करने के लिए सोचना चाहिए। जिस बुराई के कारण वे यहां आए हैं उस बुराई को त्याग करने का संकल्प लेना चाहिए। हमारी वृत्ति, दृष्टि और कृति में जो अवगुण या बुराइयों हैं उसे
भगाना चाहिए।
उन्होंने जीओ और जीने दो की भावना को विकसित करने का आह्वान किया। इस मौके पर जेल उपाधीक्षक अशोक शर्मा ने ऐसे आयोजनों को निरंतर करते रहने का आह्वान किया।

एक आदर्श समाज में नैतिक सामाजिक व आध्यात्मिक मूल्य प्रचलित होते है। नैतिक मूल्यों का हमें सम्मान करना चाहिए। मूल्य शिक्षा द्वारा ही बेहतर जीवन जीने की



एक आदर्श समाज में नैतिक सामाजिक व आध्यात्मिक मूल्य प्रचलित होते है। नैतिक मूल्यों का हमें सम्मान करना चाहिए। मूल्य शिक्षा द्वारा ही बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। उक्त उदगार प्रजापिता ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मांउट आबु से पधारे हुए राजयोगी ब्रम्हकुमार भगवान भाई ने कहे। वे शारदा विद्या निकेतन और सरस्वती विद्या मंदिर में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा लालच भ्रम, बेईमानी, चोरी, ठगी, नकारात्मक विचार मनुष्य को नैतिकता के विरूद्घ आचरण करने के लिए उकराता है। उन्होने बताया कि हमें अनैतिकता का मार्ग छोडकर नैतिकता के तरफ जाना है। जीवन में नैतिक शिक्षा आचरण में लाना ही शिक्षा का मुल उददेश्य है। नैतिक मूल्यों की धारण से आंतरिक शक्तियों का विकास होता है और आत्मबल, मनोबल बढता है। उन्होने कहा कि नैतिक मूल्यों से युक्त जीवन ही सभी को पसंद आता है। सदगुणों की धारणा से ही हम प्रशंसा के पान बन सकते है। उन्होने बताया कि मूल्य ही जीवन की सुदंरता और वरदान है। जीवन में धारण किये हुए मूल्य ही हमारे श्रैष्ठ चरित्र की निशानी है। मूल्यों को जीवन में धारण करने की हमारे मन में आस्था निर्माण करने की आवश्यकता है।
भगवान भाई ने कहा कि मूल्य ही हमारे जीवन की अनमोल निधि है। मूल्यों के आधार से हम अपने जीवन में खुशी प्रदान कर सकते है। मूल्य ही हमारे सच्चे मित्र है। उन्होने आगे बताया कि शिक्षा उददेश्य बंधनों से मुक्ति के तरफ से जाना रही है नैतिक शिक्षा द्वारा प्राप्त मुल्यों के आधार से ही हम निर्वधंन तथा स्वालंबी बन सकत है। मूल्यों के आधार से ही यह चलता है। उन्होने बताया कि अगर मूल्यों का हास होगा तो यह संसार विरान हो जायेगा।
राक्षसी प्रवृत्ति द्वारा जीवन दिन प्रति दिन दुखी अशांत बनता जायेगा। उन्होने बताया कि अगर जीवन मूल्यों को नष्टï करोगे तो हमारा जीवन भी ऐसा ही व्यर्थ नष्टï हो जायेगा। जो मूल्यों की रक्षा करेगा उसकी ही रक्षा मूल्य करेंगे अर्थात वह व्यक्ति अमरत्वा को प्राप्त करेगा। उन्होने बताया कि अमर बनना ही शिक्षा का मूल उददेश्य है। स्थानीय ब्रम्हकुमारीय की संचालिका बीके ज्योति बहन ने सभी को ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का परिचय दिया उन्होने बताया कि आधयात्मीकता नही अपनाने का मतलब जीवन में मानवीय नैतिक मुल्य नही अपनाना है।

समाज सुधार में शिक्षकों की भूमिका अहम Jan 10, 07:32 pm बताएं बहादुरगढ़, जागरण संवाद केंद्र : समाज को सुधारने के लिए आदर्श शिक्षकों की आवश्यकता है क्य



समाज सुधार में शिक्षकों की भूमिका अहम

Jan 10, 07:32 pm

बहादुरगढ़, जागरण संवाद केंद्र : समाज को सुधारने के लिए आदर्श शिक्षकों की आवश्यकता है क्योंकि शिक्षक ही समाज शिल्पी हैं। यह विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान ने व्यक्त किए। वे पीडीएम पोलिटेक्निक में अध्यापकों को आदर्श शिक्षक विषय पर संबोधित कर रहे थे।

भगवान भाई ने कहा कि आज की बिगड़ती परिस्थिति को देखते हुए समाज को सुधारने की बहुत आवश्यकता है। वर्तमान के छात्र भावी समाज है। अगर भावी समाज को आदर्श बनाना है तो छात्राओं को भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक आचरण पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षक वही है जो अपने जीवन की धारणाओं से दूसरों को शिक्षा देता है। धारणाओं से विद्यार्थियों में बल भरता है। जीवन की धारणाओं से वाणी, कर्म, व्यवहार और व्यक्तित्व में निखार आ जाता है। शिक्षा देने के बाद भी अगर बच्चे बिगड़ रहे है तो इसका मतलब मूर्तिकार में भी कुछ कमी है। शिक्षकों को केवल पाठ पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं बल्कि समाज को श्रेष्ठ मार्ग दर्शन देने वाला शिक्षक बनना है। उन्होंने कहा कि शिक्षक होने के नाते हमारे अंदर सद्गुण होना आवश्यक है। किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को अपने जीवन की धारणाओं के आधार पर नैतिक पाठ भी आवश्यक पढ़ाना चाहिए। शिक्षकों के हाव-भाव, उठना, बोलना, चलना व व्यवहार करना इन बातों का असर भी बच्चों के जीवन में पड़ता है। उन्होंने कहा कि अब समाज को शिक्षित करने का शिक्षा देने के स्वरूप को बदलने की आवश्यकता है। स्वयं के आचरण से शिक्षा देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि समाज को सुधारने की अहम भूमिका शिक्षकों की है। प्राचीन भारत में स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी जैसे महान पुरुष समाज में शिक्षक के रूप में थे। हमें विद्यार्थियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाकर उन्हे गुणवान, चरित्रवान, दिव्य, संस्कारवान बनाने की आवश्यकता है। वहीं स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र के ब्रह्मकुमार संदीप भाई ने कहा कि एक दीपक से पूरा कमरा प्रकाशित होता है। इसी तरह एक शिक्षक से हजारों बच्चे शिक्षित होते है और वे उजाले का काम करते है। प्राचार्य एमएम शर्मा ने कहा कि वर्तमान की परिस्थितियों को परिवर्तन करने की जिम्मेवारी शिक्षकों की है। शिक्षकों को स्वयं के आचरण पर ध्यान देने के लिए अध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ तनाव मुक्त रहने की आवश्यकता है। इस मौके पर ओपी रुहिल व राजपाल उपस्थित रहे।

भास्कर न्यूज त्न बहादुरगढ़ नाहरा-नाहरी रोड स्थित प्रजापिता ब्रह्मकुमारी सेंटर में माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई का उनकी विलक्षण प्रतिभा और कर्मठ स


भास्कर न्यूज त्न बहादुरगढ़
नाहरा-नाहरी रोड स्थित प्रजापिता ब्रह्मकुमारी सेंटर में माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई का उनकी विलक्षण प्रतिभा और कर्मठ समाजसेवा के चलते सम्मान किया गया।
सेंटर की संचालिका बीके अंजली बहन ने बताया कि भगवान भाई ने हरियाणा के विभिन्न शहरों में
नैतिक शिक्षा दी हैं।
उन्होंने बताया कि भगवन भाई को इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड के चीफ एडीटर विश्वरूप राय चौधरी द्वारा भी सम्मानित किया गया है। महाराष्ट्र के सांगसी जिले एक साधारण परिवार में जन्मे भगवान भाई को रद्दी की किताबों में ब्रह्मकुमारी सेवा केंद्र के किताबों के कुछ पन्ने मिले।
उन पन्नों ने उनका जीवन बदलकर रख दिया। इसके बाद तीस वर्षों के राजयोग के अभ्यास द्वारा उन्होंने अपना मनोबल व आत्मबल बढ़ाया। इसके फलस्वरूप आज भगवान भाई ने पांच हजार स्कूलों में तथा 800 जेलों में जाकर सेवा का नया रिकार्ड बनाया।
उनके प्रयास से हजारों कैदियों द्वारा अपराध को छोड़कर अपने जीवन में सद्भावना को अपनाया। सम्मान समारोह अवसर पर सेंटर की बीके विनीता, अमृता भी शामिल रहीं।

Friday, January 6, 2012

हम भगवान् के बारे में क्या जानते हैं की वो हमारे मालिक हैं और हम उनके दास-दासीआन .पर इस तरह के रिश्ते में एक भय की अनुभूति होती है की अगर ये न किया तो


हम भगवान् के बारे में क्या जानते हैं की वो हमारे मालिक हैं और हम उनके दास-दासीआन .पर इस तरह के रिश्ते में एक भय की अनुभूति होती है की अगर ये न किया तो भगवान् रुष्ट हो जायेंगें वो न किया तो भगवान् रुष्ट हो जायेंगें. इस तरह भगवान् से हम दूर होते जाते हैं.भगवान् की सत्ता से हम इनकार नहीं करते हैं पर किस प्रकार हम प्रभु से कैसा रिश्ता बनाएं की हम प्रभु को पिता कह सकें.हमारे दो पिता हैं एक लौकिक और परलौकिक .लौकिक पिता जिन्होनें हमें संसार में एक प्राणी के रूप में जीवनदान दिया और दुसरे पारलौकिक पिता जो जगतपिता हैं.हम अपने लौकिक पिता से जैसा रिश्ता बना के रखते हैं वैसा ही रिश्ता हम पारलौकिक पिता को भी अपना कर अपना जीवन सफल कर सकते हैं.ये शिक्षा हमें ब्रह्मकुमार -ब्रह्मकुमारियों द्वारा दी जा रही है.यह एक संस्था के रूप में उभर रही है ,जहाँ लोग संसार के झमेलों से परेशान हो कर यहाँ शरण लेते हैं,जहाँ उन्हें उनके कई प्रश्नों के उत्तर जिनकी तलाश में भटक रहे थे वे पा लेते हैं.इस संस्था के संस्थापक दादा लेखराज हैं जिन्हें आज प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जाना जाता है.इसके विश्व के ७२ देशों में ४,५०० केंद्र हैं जो इन कार्यक्रमों को चला रहे हैं.
जिस तरह की शिक्षा पर यहाँ जोर दिया जाता है वोह इस प्रकार है की हम शरीर न होकर एक आत्मा हैं इस तरह से हम बाह्यमुखी न होकर अंतर्मुखी हो जाते हैं और दुनिया के विषयों में हमारा मन भटकने से बच जाता है.अंतर्मुखता सभी दिव्य गुणों की खान है.इसका अर्थ ये है की मनुष्य अपनी इन्द्रियों से जैसे आंख से वही दृश्य देखे,कानों से वही बातें सुनें,वही वचन बोले,वैसा ही भोजन करे जिससे की देह के अन्दर स्थित आत्मा की उन्नति हो.मानुष देह के कारण अभिमान करता है तो उसे देह्भिमानी कहते हैं पर जब वो स्वयं को एक आत्मा के रूप में देखता है तो उसे देहिभिमानी कहते हैं.दिव्य गुणों में एक गुण है सहनशीलता और धैर्य.किसी भी उच्च लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहन करना पड़ता है.यदि मनुष्य किसी कष्टकारी परिस्थिति को सहन नहीं करेगा तो उसमे क्रोध उत्पन्न होगा.ये जलन,द्वेष,क्रोध आदि पवित्रता अथवा विकारों में ही तो गिने जाते हैं.निंदा को फूल और निंदक को भक्त मनो.अत:जब कोई मनुष्य निंदा करता है तो ऐसा सोचो की ये निंदा फूल बनती जा रही है.मुश्किलों को सहन करोगे तो मलूक बनोगे.परिस्थिति को परीक्षा-पत्र समझो.धीरज धरने और बीतती को बिसरने से ही लाभ.धैर्य खोने से निर्णय-शक्ति ख़राब होती और स्वास्थ भी ख़राब होता है.हर्षितमुखता एक ऐसा गुण है इसे धारण करने से ज्ञानवान मनुष्य की न केवल अपनी अवस्था आनंदमयी होती है बल्कि इस द्वारा दुसरे लोगों की भी अलौकिक सेवा होती है.यह एक सेवाकारी गुण है.जो मनुष्य दिव्य गुण रुपी रत्ना मोती चुगता है और दुर्गुण रुपी कंकड़ छोड़ देता है अथवा पवित्रता रुपी क्षीर ले लेता है,वो मनुष्य हंसा के समान है और हर्षितमुख रह सकता है.अहंकार थोडा भी क्यों न हो अकल्याणकारी होता है.सभी दिव्य गुणों में संतोष ही शिरोमणि है.संतोषी ही सुखी भी सुखदायक भी.असंतुष्ट व्यक्ति वातावरण बिगाड़ता है.त्याग जैसे दिव्य गुण धारण करने से मानव महान बनता है.लोक-लाज,निंदा स्तुति तथा मान-उपमान का त्याग हो.अशुद्ध संकल्पों का त्याग,ज्ञान से निश्चय, निश्चय से त्याग, त्याग से प्राप्ति संभव है . यदि मनुष्य में दिव्य गुण हों तो उस मनुष्य से बहुत ही कम लोग बिगड़ेंगे,
नम्रता और निरहंकारिता भी बहुत उच्च दिव्य गुण हैं, इन्हें धारण करने वाला मनुष्य टूटता नहीं है क्यूंकि उसमें लचक होती है अतः उसका सभी से स्नेह और सम्बन्ध बना रहता है. सरलता मन की सफाई है, कुटिलता कचड़ा है. सरलता से मनुष्य स्वस्थ होता है. गंभीरता जिस मनुष्य में होती है वह हर एक कार्य सोच समझ कर करता है, इसीलिए उसे कार्य में सफलता मिलती है. गमभीर मनुष्य को धन, शक्ति, समय और जीवन की बचत होती है. वे व्यर्थ नहीं होते. निर्भयता जीवन-दान देने वाली है. निर्भय मनुष्य सब विघ्नों से छुट जाता है. अडोल रहने वाले को ही सतयुग में अडोल सिंहासन मिलता है.
इस प्रकार हम देखते हैं की एक-एक गुण अपार सुख देने वाला है. इस तरह की शिक्षा से मानव स्वयं के भीतर शांति स्थापित कर पायेगा और विश्व शांति के भी प्रयास करेगा.
मानव कल्याण के लिए ब्रह्माकुमारी द्वारा किये जा रहे ये प्रयास निश्चित रूप से सफल होंगे.

मैं कौन हु मनुष्य अपने जीवन में कई पहेलिय हल करते है और उसके फलस्वरूप ईनाम भी पाते है परन्तु इस छोटी पहेली का हल कोई नही जानता कि -- मै कौन हूँ



मैं कौन हु
मनुष्य अपने जीवन में कई पहेलिय हल करते है और उसके फलस्वरूप ईनाम भी पाते है परन्तु इस छोटी पहेली का हल कोई नही जानता कि -- मै कौन हूँ ? यो तो हर-एक मनुष्य सारा दिन में-में कहता ही रहता है , परन्तु उससे पूछा जाये कि मै कहने वाला कौन ? तो वह कहेगा कि - मै लालचंद हु परन्तु सोचह जाये तो वास्तव मै यह तो शरीर का नाम है, शरीर तो "मेरा" है मै तो शरीर से अलग हूँ बस, इस छोटी सी पहेली का प्रेक्टिकल हल न जानने के कारण, अर्थात स्वयं को न जानने के कारण, आज सभी मनुष्य देह-अभिमानी है और सभी काम, क्रोधादि विकारो के वश है तथा दुखी है I
अब परमपिता परमात्मा कहते है कि --" आज मनुष्य में घमंड तो इतना है कि वह समझता है कि --"मै सेठ हु, स्वामी हु, अफसर हु,...." परन्तु उसमे अजयन इतना है कि वह स्वयं को भी नही जानता " मै कौन हु यह सृष्टि रूपी खेल आदि से अंत तक कैसे बना हुआ है, मै इसमे कहा से आया, कब आया, कैसे सुख शांति का राज्य गवाया तथा परमप्रिय परमपिता परमात्मा ( इस सृष्टि के रचयिता) कौन है ? इन रहस्यों को कोई भी नही जानता अब जीवन कि इस पहेली को फिर से जानकर मनुष्य देहि-अभिमानी बन सकता है और फिर उसके फलस्वरूप नर को श्री नारायण और नारी को श्री लक्ष्मी पद कि प्राप्ति होती है और मनुष्य को मुक्ति तथा जीवन मुक्ति मिल जाती है वह सम्पूर्ण पवित्रता, सुख और शांति को पा लेता है I

सकारात्मक सोच से दूर होता है तनाव नीमच , बुधवार, 28 दिसंबर 2011( 22:42 IST ) Webdunia सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक रूप से सदैव स्वस्थ




सकारात्मक सोच से दूर होता है तनाव
नीमच , बुधवार, 28 दिसंबर 2011( 22:42 IST )
Webdunia
सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक रूप से सदैव स्वस्थ रह सकता है। नकारात्मक सोच ही तनाव का मूल है। इससे कई प्रकार के रोग उत्पन्ना हो जाते हैं।


यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने बुधवार को ब्रह्माकुमारी आश्रम में आयोजित तपस्या शिविर में कही। उन्होंने कहा कि यदि कोई अभी हमारे साथ गलत व्यवहार कर रहा है तो अवश्य हमने भी पूर्व में कभी ऐसा व्यवहार उसके साथ किया होगा, इसलिए यह सोचें कि ऋण चुकाया। प्रमुख वक्ता ब्रह्माकुमारी संस्थान के संभागीय प्रभारी सुरेंद्र भाई ने कहा कि हमारी स्मृति और वृत्ति ही जीवन में सुख-दुःख का आधार है। स्मृति बनती है संग से और वृत्ति बनती है वातावरण से। अतः हमें सदैव सत्संग व आध्यात्मिक वातावरण का चुनाव करना चाहिए। ब्रह्माकुमारी पुष्पा बहन ने सभी शिविरार्थियों को तिलक लगाकर प्रसाद प्रदान किया तथा सविता। बहन ने राजयोग का अभ्यास करवाया। भगवान भाई ने मनासा, रामपुरा व देवरान के कार्यक्रमों में भी भाग लिया व सक्रिय सेवादारों को संबोधित किया-निप्र

हम भगवान् के बारे में क्या जानते हैं की वो हमारे मालिक हैं और हम उनके दास-दासीआन .पर इस तरह के रिश्ते में एक भय की अनुभूति होती है की अगर ये न किया तो



हम भगवान् के बारे में क्या जानते हैं की वो हमारे मालिक हैं और हम उनके दास-दासीआन .पर इस तरह के रिश्ते में एक भय की अनुभूति होती है की अगर ये न किया तो भगवान् रुष्ट हो जायेंगें वो न किया तो भगवान् रुष्ट हो जायेंगें. इस तरह भगवान् से हम दूर होते जाते हैं.भगवान् की सत्ता से हम इनकार नहीं करते हैं पर किस प्रकार हम प्रभु से कैसा रिश्ता बनाएं की हम प्रभु को पिता कह सकें.हमारे दो पिता हैं एक लौकिक और परलौकिक .लौकिक पिता जिन्होनें हमें संसार में एक प्राणी के रूप में जीवनदान दिया और दुसरे पारलौकिक पिता जो जगतपिता हैं.हम अपने लौकिक पिता से जैसा रिश्ता बना के रखते हैं वैसा ही रिश्ता हम पारलौकिक पिता को भी अपना कर अपना जीवन सफल कर सकते हैं.ये शिक्षा हमें ब्रह्मकुमार -ब्रह्मकुमारियों द्वारा दी जा रही है.यह एक संस्था के रूप में उभर रही है ,जहाँ लोग संसार के झमेलों से परेशान हो कर यहाँ शरण लेते हैं,जहाँ उन्हें उनके कई प्रश्नों के उत्तर जिनकी तलाश में भटक रहे थे वे पा लेते हैं.इस संस्था के संस्थापक दादा लेखराज हैं जिन्हें आज प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जाना जाता है.इसके विश्व के ७२ देशों में ४,५०० केंद्र हैं जो इन कार्यक्रमों को चला रहे हैं.
जिस तरह की शिक्षा पर यहाँ जोर दिया जाता है वोह इस प्रकार है की हम शरीर न होकर एक आत्मा हैं इस तरह से हम बाह्यमुखी न होकर अंतर्मुखी हो जाते हैं और दुनिया के विषयों में हमारा मन भटकने से बच जाता है.अंतर्मुखता सभी दिव्य गुणों की खान है.इसका अर्थ ये है की मनुष्य अपनी इन्द्रियों से जैसे आंख से वही दृश्य देखे,कानों से वही बातें सुनें,वही वचन बोले,वैसा ही भोजन करे जिससे की देह के अन्दर स्थित आत्मा की उन्नति हो.मानुष देह के कारण अभिमान करता है तो उसे देह्भिमानी कहते हैं पर जब वो स्वयं को एक आत्मा के रूप में देखता है तो उसे देहिभिमानी कहते हैं.दिव्य गुणों में एक गुण है सहनशीलता और धैर्य.किसी भी उच्च लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहन करना पड़ता है.यदि मनुष्य किसी कष्टकारी परिस्थिति को सहन नहीं करेगा तो उसमे क्रोध उत्पन्न होगा.ये जलन,द्वेष,क्रोध आदि पवित्रता अथवा विकारों में ही तो गिने जाते हैं.निंदा को फूल और निंदक को भक्त मनो.अत:जब कोई मनुष्य निंदा करता है तो ऐसा सोचो की ये निंदा फूल बनती जा रही है.मुश्किलों को सहन करोगे तो मलूक बनोगे.परिस्थिति को परीक्षा-पत्र समझो.धीरज धरने और बीतती को बिसरने से ही लाभ.धैर्य खोने से निर्णय-शक्ति ख़राब होती और स्वास्थ भी ख़राब होता है.हर्षितमुखता एक ऐसा गुण है इसे धारण करने से ज्ञानवान मनुष्य की न केवल अपनी अवस्था आनंदमयी होती है बल्कि इस द्वारा दुसरे लोगों की भी अलौकिक सेवा होती है.यह एक सेवाकारी गुण है.जो मनुष्य दिव्य गुण रुपी रत्ना मोती चुगता है और दुर्गुण रुपी कंकड़ छोड़ देता है अथवा पवित्रता रुपी क्षीर ले लेता है,वो मनुष्य हंसा के समान है और हर्षितमुख रह सकता है.अहंकार थोडा भी क्यों न हो अकल्याणकारी होता है.सभी दिव्य गुणों में संतोष ही शिरोमणि है.संतोषी ही सुखी भी सुखदायक भी.असंतुष्ट व्यक्ति वातावरण बिगाड़ता है.त्याग जैसे दिव्य गुण धारण करने से मानव महान बनता है.लोक-लाज,निंदा स्तुति तथा मान-उपमान का त्याग हो.अशुद्ध संकल्पों का त्याग,ज्ञान से निश्चय, निश्चय से त्याग, त्याग से प्राप्ति संभव है . यदि मनुष्य में दिव्य गुण हों तो उस मनुष्य से बहुत ही कम लोग बिगड़ेंगे,
नम्रता और निरहंकारिता भी बहुत उच्च दिव्य गुण हैं, इन्हें धारण करने वाला मनुष्य टूटता नहीं है क्यूंकि उसमें लचक होती है अतः उसका सभी से स्नेह और सम्बन्ध बना रहता है. सरलता मन की सफाई है, कुटिलता कचड़ा है. सरलता से मनुष्य स्वस्थ होता है. गंभीरता जिस मनुष्य में होती है वह हर एक कार्य सोच समझ कर करता है, इसीलिए उसे कार्य में सफलता मिलती है. गमभीर मनुष्य को धन, शक्ति, समय और जीवन की बचत होती है. वे व्यर्थ नहीं होते. निर्भयता जीवन-दान देने वाली है. निर्भय मनुष्य सब विघ्नों से छुट जाता है. अडोल रहने वाले को ही सतयुग में अडोल सिंहासन मिलता है.
इस प्रकार हम देखते हैं की एक-एक गुण अपार सुख देने वाला है. इस तरह की शिक्षा से मानव स्वयं के भीतर शांति स्थापित कर पायेगा और विश्व शांति के भी प्रयास करेगा.
मानव कल्याण के लिए ब्रह्माकुमारी द्वारा किये जा रहे ये प्रयास निश्चित रूप से सफल होंगे.

हम भगवान् के बारे में क्या जानते हैं की वो हमारे मालिक हैं और हम उनके दास-दासीआन .पर इस तरह के रिश्ते में एक भय की अनुभूति होती है की अगर ये न किया तो



हम भगवान् के बारे में क्या जानते हैं की वो हमारे मालिक हैं और हम उनके दास-दासीआन .पर इस तरह के रिश्ते में एक भय की अनुभूति होती है की अगर ये न किया तो भगवान् रुष्ट हो जायेंगें वो न किया तो भगवान् रुष्ट हो जायेंगें. इस तरह भगवान् से हम दूर होते जाते हैं.भगवान् की सत्ता से हम इनकार नहीं करते हैं पर किस प्रकार हम प्रभु से कैसा रिश्ता बनाएं की हम प्रभु को पिता कह सकें.हमारे दो पिता हैं एक लौकिक और परलौकिक .लौकिक पिता जिन्होनें हमें संसार में एक प्राणी के रूप में जीवनदान दिया और दुसरे पारलौकिक पिता जो जगतपिता हैं.हम अपने लौकिक पिता से जैसा रिश्ता बना के रखते हैं वैसा ही रिश्ता हम पारलौकिक पिता को भी अपना कर अपना जीवन सफल कर सकते हैं.ये शिक्षा हमें ब्रह्मकुमार -ब्रह्मकुमारियों द्वारा दी जा रही है.यह एक संस्था के रूप में उभर रही है ,जहाँ लोग संसार के झमेलों से परेशान हो कर यहाँ शरण लेते हैं,जहाँ उन्हें उनके कई प्रश्नों के उत्तर जिनकी तलाश में भटक रहे थे वे पा लेते हैं.इस संस्था के संस्थापक दादा लेखराज हैं जिन्हें आज प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जाना जाता है.इसके विश्व के ७२ देशों में ४,५०० केंद्र हैं जो इन कार्यक्रमों को चला रहे हैं.
जिस तरह की शिक्षा पर यहाँ जोर दिया जाता है वोह इस प्रकार है की हम शरीर न होकर एक आत्मा हैं इस तरह से हम बाह्यमुखी न होकर अंतर्मुखी हो जाते हैं और दुनिया के विषयों में हमारा मन भटकने से बच जाता है.अंतर्मुखता सभी दिव्य गुणों की खान है.इसका अर्थ ये है की मनुष्य अपनी इन्द्रियों से जैसे आंख से वही दृश्य देखे,कानों से वही बातें सुनें,वही वचन बोले,वैसा ही भोजन करे जिससे की देह के अन्दर स्थित आत्मा की उन्नति हो.मानुष देह के कारण अभिमान करता है तो उसे देह्भिमानी कहते हैं पर जब वो स्वयं को एक आत्मा के रूप में देखता है तो उसे देहिभिमानी कहते हैं.दिव्य गुणों में एक गुण है सहनशीलता और धैर्य.किसी भी उच्च लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहन करना पड़ता है.यदि मनुष्य किसी कष्टकारी परिस्थिति को सहन नहीं करेगा तो उसमे क्रोध उत्पन्न होगा.ये जलन,द्वेष,क्रोध आदि पवित्रता अथवा विकारों में ही तो गिने जाते हैं.निंदा को फूल और निंदक को भक्त मनो.अत:जब कोई मनुष्य निंदा करता है तो ऐसा सोचो की ये निंदा फूल बनती जा रही है.मुश्किलों को सहन करोगे तो मलूक बनोगे.परिस्थिति को परीक्षा-पत्र समझो.धीरज धरने और बीतती को बिसरने से ही लाभ.धैर्य खोने से निर्णय-शक्ति ख़राब होती और स्वास्थ भी ख़राब होता है.हर्षितमुखता एक ऐसा गुण है इसे धारण करने से ज्ञानवान मनुष्य की न केवल अपनी अवस्था आनंदमयी होती है बल्कि इस द्वारा दुसरे लोगों की भी अलौकिक सेवा होती है.यह एक सेवाकारी गुण है.जो मनुष्य दिव्य गुण रुपी रत्ना मोती चुगता है और दुर्गुण रुपी कंकड़ छोड़ देता है अथवा पवित्रता रुपी क्षीर ले लेता है,वो मनुष्य हंसा के समान है और हर्षितमुख रह सकता है.अहंकार थोडा भी क्यों न हो अकल्याणकारी होता है.सभी दिव्य गुणों में संतोष ही शिरोमणि है.संतोषी ही सुखी भी सुखदायक भी.असंतुष्ट व्यक्ति वातावरण बिगाड़ता है.त्याग जैसे दिव्य गुण धारण करने से मानव महान बनता है.लोक-लाज,निंदा स्तुति तथा मान-उपमान का त्याग हो.अशुद्ध संकल्पों का त्याग,ज्ञान से निश्चय, निश्चय से त्याग, त्याग से प्राप्ति संभव है . यदि मनुष्य में दिव्य गुण हों तो उस मनुष्य से बहुत ही कम लोग बिगड़ेंगे,
नम्रता और निरहंकारिता भी बहुत उच्च दिव्य गुण हैं, इन्हें धारण करने वाला मनुष्य टूटता नहीं है क्यूंकि उसमें लचक होती है अतः उसका सभी से स्नेह और सम्बन्ध बना रहता है. सरलता मन की सफाई है, कुटिलता कचड़ा है. सरलता से मनुष्य स्वस्थ होता है. गंभीरता जिस मनुष्य में होती है वह हर एक कार्य सोच समझ कर करता है, इसीलिए उसे कार्य में सफलता मिलती है. गमभीर मनुष्य को धन, शक्ति, समय और जीवन की बचत होती है. वे व्यर्थ नहीं होते. निर्भयता जीवन-दान देने वाली है. निर्भय मनुष्य सब विघ्नों से छुट जाता है. अडोल रहने वाले को ही सतयुग में अडोल सिंहासन मिलता है.
इस प्रकार हम देखते हैं की एक-एक गुण अपार सुख देने वाला है. इस तरह की शिक्षा से मानव स्वयं के भीतर शांति स्थापित कर पायेगा और विश्व शांति के भी प्रयास करेगा.
मानव कल्याण के लिए ब्रह्माकुमारी द्वारा किये जा रहे ये प्रयास निश्चित रूप से सफल होंगे.