मैं कौन हु
मनुष्य अपने जीवन में कई पहेलिय हल करते है और उसके फलस्वरूप ईनाम भी पाते है परन्तु इस छोटी पहेली का हल कोई नही जानता कि -- मै कौन हूँ ? यो तो हर-एक मनुष्य सारा दिन में-में कहता ही रहता है , परन्तु उससे पूछा जाये कि मै कहने वाला कौन ? तो वह कहेगा कि - मै लालचंद हु परन्तु सोचह जाये तो वास्तव मै यह तो शरीर का नाम है, शरीर तो "मेरा" है मै तो शरीर से अलग हूँ बस, इस छोटी सी पहेली का प्रेक्टिकल हल न जानने के कारण, अर्थात स्वयं को न जानने के कारण, आज सभी मनुष्य देह-अभिमानी है और सभी काम, क्रोधादि विकारो के वश है तथा दुखी है I
अब परमपिता परमात्मा कहते है कि --" आज मनुष्य में घमंड तो इतना है कि वह समझता है कि --"मै सेठ हु, स्वामी हु, अफसर हु,...." परन्तु उसमे अजयन इतना है कि वह स्वयं को भी नही जानता " मै कौन हु यह सृष्टि रूपी खेल आदि से अंत तक कैसे बना हुआ है, मै इसमे कहा से आया, कब आया, कैसे सुख शांति का राज्य गवाया तथा परमप्रिय परमपिता परमात्मा ( इस सृष्टि के रचयिता) कौन है ? इन रहस्यों को कोई भी नही जानता अब जीवन कि इस पहेली को फिर से जानकर मनुष्य देहि-अभिमानी बन सकता है और फिर उसके फलस्वरूप नर को श्री नारायण और नारी को श्री लक्ष्मी पद कि प्राप्ति होती है और मनुष्य को मुक्ति तथा जीवन मुक्ति मिल जाती है वह सम्पूर्ण पवित्रता, सुख और शांति को पा लेता है I
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